पहले मुफ़्त में लुटाकर इसकी आदत लगायी जाती है ... इश्क़ हो या नशा बाद में दोनो की बड़ी क़ीमत वसूली जाती है ....
❛बिखरा वज़ूद, टूटे ख़्वाब, सुलगती तन्हाईयाँ, कितने हसींन तोहफे दे जाती है ये अधूरी मोहब्बत।❜
बड़े सुकून से रहता है वो आजकल मेरे बगैर... जैसे किसी उलझन से छुटकारा मिल गया हो उसे...!!!
लो देख लो, ये इश्क़ है ये वस्ल है, ये हिज्र, अब लौट चलें आओ, बहुत काम पडा है |
शुक्र है की दिल का हाल सिर्फ खुदा ही है जानता, अगर ये बेनकाब होता तो यकीनन फसाद होता |
ये चांद की आवारगी भी यूंही नहीं है, कोई है जो इसे दिनभर जला कर गया है..
मय-ख़ाना-ए-हस्ती का जब दौर ख़राब आया , कुल्लड़ में शराब आई पत्ते पे कबाब आया !
वो ये समझता है की मैं हर चेहरे का तलबगार हूँ, मैं देखता सभी को हूँ बस उस की तलाश में हूँ....
छिलता रहता है...दिल मेरा आये दिन, मखमली लोगों की खुरदुरी बातों से....
वो मेरी शायरी को यूँ छू कर चले जाते हैं ..!! जैसे रुक गए तो मरीजे इश्क हो ज़ायेंगे....!!!!
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