फुर्सत मिले तो कभी बैठ कर सोचना…. तुम भी मेरे अपने हो… या सिर्फ हम ही तुम्हारे हैं ?
तहज़ीब में भी उसकी,क्या खूब अदा थी.! 'नमक' भी अदा किया,तो ज़ख्मों पे छिड़क कर.!!????
इश्क के बाजार में ना बिकने वाला एक पहलू था मैं... वो लबों पर मुस्कान लेकर आया और मेरा खरीदार बन गया...
"मोहल्ले की मोहब्बत का भी अजीब फ़साना है, ?? चार घर की दूरी है और बीच में सारा जमाना है...!!
चाहत का क्या ..? किसी को भी चाह लें... मसला मोहब्बत का है, सिर्फ एक से होती है..!!
सब तेरी मोहब्बतों की इनायत है वरना, मैं क्या!मेरा दिल क्या!मेरी शायरी क्या!!
बिछड़ने का तो वो पहले से ही मन बना चुकी थी.... अब तो बस उसे मेरी तरफ से बहाना चाहिए था... मेरी आँखो ने पकड़ा है, उन्हे कई बार रंगे हाथ..
बताओ ज़रा कौन सी बहार ले कर आयी है ये जनवरी.... जो सब कह रहे थे बड़ा वीरान था दिसम्बर...
यूँ तो उल्फत के तकाज़े बहुत हैं.. एक वो ज़ालिम बहुत हैं इक हम जिद्दी बहुत हैं..
वो इश्क करना तो चाहते है , मगर घबराते बहुत है.. सुलगती रेत में पानी की अब तलाश नहीं, मगर ये मैंने कब कहा के मुझे प्यास नहीं..!
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